रहस्य
इन राहों में, चलते चलते,
अचानक,
दूर कहीं से कोई आवाज आई,
सुनो! प्रिय सुनो!
फिर एक अट्टहास
मैं चकित हो, थोड़ा घबराया,
सूनसान सडक, वीरान राहें,
और पूस की ये रात,
भयावह समां
ये कौन हैं ?, इस वक्त यहां,
किसने हमें पुकारा,
चांद भी आज उगेगा नही,
राह है अभी काफी लंबी,
केवल इन तारों का है साथ,
मगर इस समां में कौन है ?
इस राह का मेरा ये हमराह
हिम्मत करके मैने पूछ ही लिया,
कौन, कौन हो तुम, कौन, अरे तुम हो कौन,
कुछ देर के लिए छा गया मौन,
अब है मेरे साथ,
केवल ये समां,
विरान, सूनसान, शीतकाल
और केवल अंधकार,
कुछ देर बाद
सब कुछ
सामान्य,
तभी फिर से
सुनाई दी
वही आवाज,
वही अट्टहास......
फिर उसने दिया मेरे सवालो का
जवाब....
मै..... मैं हंु तुम्हारा
जमीर...
तुम्हारी हर राह में,
हर मंजिल में
तुम्हारा हमसफर, हमराही....
मैंने कहा...
तुम कुछ बताओ
कि इन राहों
पर चलते रहे
इसी तरह तो
क्या मुकां होगा
क्या अंजाम होगा
मेरे मुल्क का
जबाब आया
मैं बसा हूं हर एक के सीने में,
इसलिए मैं बताता हूं सबका हाल
आजकल बहुत बदलाव आ गया हैं।
दिलों में फैल गया है अलगाव
विकसित हो रहा है हिंसा का बाजार...
अब सुनो मेरी बात,
ध्यान से सुनो मुझसे ना डरो
मेरी बात समझो,
इस हिंसा के बाजार का नाश
हमें करना होगा,
इससे पहले हमें
कुछ काम नया करना होगा,
दिलों में बसे अलगाव को मिटाना होगा।
सभी के दिल में प्यार को बसाना होगा।
"नारद"
Wednesday, December 15, 2010
रहस्य
I am a social worker who devoted himself with youth development, entrepreneurship, skill development of rural youth,
I have completed my MBA in Entrepreneurship , also completed my Law degree,
Currently working with United Nations Volunteers as a National Specialist Category and appointed as District Youth Cordinator, Nehru Yuva Kendra, Sikar
ये हमारे देष में आजकल क्या हो रहा हैं।
लग रहा हैं कि भ्रष्टाचार का कोमनवेल्थ हो रहा हैं।
इसमें कोमनमैन की सारी वैल्थ चली गई,
और इन खिलाडियों की हैल्थ बन गई।
ऐसे में हे मर्यादा पुरूषोत्तम राम,
क्यो कर दिया तुमने ये काम।
ना जाने तुम्हारे दिमाग में ये क्या आया,
सेवकों को भेजकर हनुमानजी कोे बुलवाया।
फिर उनसे एक गुप्त स्थान पर मंत्रणा की,
जो कि आपके एक पुराने विष्वासपात्र दूत का घर था।
क्योंकि आपको भी शायद फोन टेपिंग और जासूसी का डर था।
फिर फैसला ले ही लिया गया।
और गृह मंत्रालय को सूचित कर दिया गया।
एक राजनैतिक यात्रा का कार्यक्रम बनाया गया।
और पुष्पक विमान में सरकारी खर्चे से फुल टैंक पेट्रोल भरवाया गया।
इस बीच श्रीराम चंद्र ने पहना अपना फोर्मल सूट,
पहने जूते और पैक कर लिया बैग मोटा,
दूसरी ओर हनुमानजी ने भी कसी लंगोट
और उठा लिया अपना सोटा।
अब निकले वे करने भारत की सैर,
देखने अपने राज्य को,,
जहां कभी उन्होने जन्म लिया था और राज किया था।
सबसे पहले वे जा रहे थे जिस नगर
उसके रास्ते में वे बोले याद हैं हनुमान
कृष्ण के मित्र पांडवों ने यहां खंडप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ बसाया था।
इसे बनाने के लिए विष्वकर्मा को बुलवाया था
और अद्भुत स्थापत्य कला का रूप दिखलाया था।
मगर आज ये यहां के क्या हाल हैं।
कहीं गंदगी तो कंही ये लोहे व सीमंेट का जाल हैं।
और ये गोल सा कौनसा सदन हैं।
क्या कोई दंगल हैं
यहां ये कैसा हाहाकार है,
क्या फिर से किसी असुर का अत्याचार हैं।
हनुमान जी बोले प्रभु ये नगर बन गया है अब दिल्ली।
ये हैं इस देष की राजधानी
और इस भवन में बैठी हैं एक फौज जो हो गई हैं अपनों से बेगानी।
प्रभु अपने जमाने के दरबारी और आज के भरोसे के व्यापारी
यहां इनका नाम हैं नेता, कुछ इनमें हैं मंत्री, और कुछ अधिकारी
पर अधिकांष ही तो हैं व्यापारी
कुछ अपने काम के कुछ अपने नाम के,
कुछ जमीन के, तो कुछ जमीर के।
इन्में से कुछ तो ऐसे हैं
सबसे बडे जिनके लिए पैसे हैं।
अरे युद्ध विधवाओं का आषियाना छीन लिया।
कुछ ने गौवंष का निवाला छीन लिया।
गोवंष के लिए रखी भूमि पर भी तो इनका कब्जा है।
तो किसी ने क्रिकेट से कमा दिये करोड़ो,
किसी ने खरीदी में किया घोटाला,
ताबूत,मषीने, हथियार, निर्माण सबमें अपना कमीषन काट डाला।
इधर तो इन लोगों में कडी टक्कर हैं।
आपस में आगे जाने की होड हैं
लगता हैं 1000 मीटर की बाधा दौड हैं।
इस दौड में हर कोई जीतता हैं।
कोई स्वर्ण कोई रजत लेके ही छूटता हैं।
क्रिकेट की दुनिया से आए थे मोदी
बैठे हैं अब जाके फिरंगियों की गोदी
राम चंद्र बोले क्या कह रहे हो हनुमान
चलो अब चलते हैं किसी और ग्राम
रास्ते में उनकी नजर एक विषाल विरान
सुन्दर परिसर पर पडी
वे बोले ये क्या हैं वत्स हनुमान!
हनुमानजी बोले मेरे प्रभु श्रीराम....
ये भी दिल्ली ही हैं और वो, वो तो हैं खेल ग्राम
प्रभु बोले अच्छा तो यही हैं वो खेलग्राम
जिसके बारे मंे तुम बता रहे थें।
इसी के लिए कलमाडी ने डुबा दिया हम देवताओं का नाम
नाम से तो है सुरों का ईष
पर हैं साला पूरा नीच।
हनुमान ये सुनकर बोले
हे प्रभु ये आपकी वाणी को क्या हो गया
इनके बारे में सुनकर तो हैं आपके सद्गुणों को भी खतरा
क्योंकि इन दुष्टों ने चूस लिया मानवता का एक एक कतरा
तो रामचंद्र जी बोले सही हैं हनुमान
जाने से पूर्व एकबार मां गंगा में नहाना होगा
फिर अन्य लोगों की भारत यात्रा पर प्रतिबंध लगाना होगा।
" नारद" 28.11.10
लग रहा हैं कि भ्रष्टाचार का कोमनवेल्थ हो रहा हैं।
इसमें कोमनमैन की सारी वैल्थ चली गई,
और इन खिलाडियों की हैल्थ बन गई।
ऐसे में हे मर्यादा पुरूषोत्तम राम,
क्यो कर दिया तुमने ये काम।
ना जाने तुम्हारे दिमाग में ये क्या आया,
सेवकों को भेजकर हनुमानजी कोे बुलवाया।
फिर उनसे एक गुप्त स्थान पर मंत्रणा की,
जो कि आपके एक पुराने विष्वासपात्र दूत का घर था।
क्योंकि आपको भी शायद फोन टेपिंग और जासूसी का डर था।
फिर फैसला ले ही लिया गया।
और गृह मंत्रालय को सूचित कर दिया गया।
एक राजनैतिक यात्रा का कार्यक्रम बनाया गया।
और पुष्पक विमान में सरकारी खर्चे से फुल टैंक पेट्रोल भरवाया गया।
इस बीच श्रीराम चंद्र ने पहना अपना फोर्मल सूट,
पहने जूते और पैक कर लिया बैग मोटा,
दूसरी ओर हनुमानजी ने भी कसी लंगोट
और उठा लिया अपना सोटा।
अब निकले वे करने भारत की सैर,
देखने अपने राज्य को,,
जहां कभी उन्होने जन्म लिया था और राज किया था।
सबसे पहले वे जा रहे थे जिस नगर
उसके रास्ते में वे बोले याद हैं हनुमान
कृष्ण के मित्र पांडवों ने यहां खंडप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ बसाया था।
इसे बनाने के लिए विष्वकर्मा को बुलवाया था
और अद्भुत स्थापत्य कला का रूप दिखलाया था।
मगर आज ये यहां के क्या हाल हैं।
कहीं गंदगी तो कंही ये लोहे व सीमंेट का जाल हैं।
और ये गोल सा कौनसा सदन हैं।
क्या कोई दंगल हैं
यहां ये कैसा हाहाकार है,
क्या फिर से किसी असुर का अत्याचार हैं।
हनुमान जी बोले प्रभु ये नगर बन गया है अब दिल्ली।
ये हैं इस देष की राजधानी
और इस भवन में बैठी हैं एक फौज जो हो गई हैं अपनों से बेगानी।
प्रभु अपने जमाने के दरबारी और आज के भरोसे के व्यापारी
यहां इनका नाम हैं नेता, कुछ इनमें हैं मंत्री, और कुछ अधिकारी
पर अधिकांष ही तो हैं व्यापारी
कुछ अपने काम के कुछ अपने नाम के,
कुछ जमीन के, तो कुछ जमीर के।
इन्में से कुछ तो ऐसे हैं
सबसे बडे जिनके लिए पैसे हैं।
अरे युद्ध विधवाओं का आषियाना छीन लिया।
कुछ ने गौवंष का निवाला छीन लिया।
गोवंष के लिए रखी भूमि पर भी तो इनका कब्जा है।
तो किसी ने क्रिकेट से कमा दिये करोड़ो,
किसी ने खरीदी में किया घोटाला,
ताबूत,मषीने, हथियार, निर्माण सबमें अपना कमीषन काट डाला।
इधर तो इन लोगों में कडी टक्कर हैं।
आपस में आगे जाने की होड हैं
लगता हैं 1000 मीटर की बाधा दौड हैं।
इस दौड में हर कोई जीतता हैं।
कोई स्वर्ण कोई रजत लेके ही छूटता हैं।
क्रिकेट की दुनिया से आए थे मोदी
बैठे हैं अब जाके फिरंगियों की गोदी
राम चंद्र बोले क्या कह रहे हो हनुमान
चलो अब चलते हैं किसी और ग्राम
रास्ते में उनकी नजर एक विषाल विरान
सुन्दर परिसर पर पडी
वे बोले ये क्या हैं वत्स हनुमान!
हनुमानजी बोले मेरे प्रभु श्रीराम....
ये भी दिल्ली ही हैं और वो, वो तो हैं खेल ग्राम
प्रभु बोले अच्छा तो यही हैं वो खेलग्राम
जिसके बारे मंे तुम बता रहे थें।
इसी के लिए कलमाडी ने डुबा दिया हम देवताओं का नाम
नाम से तो है सुरों का ईष
पर हैं साला पूरा नीच।
हनुमान ये सुनकर बोले
हे प्रभु ये आपकी वाणी को क्या हो गया
इनके बारे में सुनकर तो हैं आपके सद्गुणों को भी खतरा
क्योंकि इन दुष्टों ने चूस लिया मानवता का एक एक कतरा
तो रामचंद्र जी बोले सही हैं हनुमान
जाने से पूर्व एकबार मां गंगा में नहाना होगा
फिर अन्य लोगों की भारत यात्रा पर प्रतिबंध लगाना होगा।
" नारद" 28.11.10
I am a social worker who devoted himself with youth development, entrepreneurship, skill development of rural youth,
I have completed my MBA in Entrepreneurship , also completed my Law degree,
Currently working with United Nations Volunteers as a National Specialist Category and appointed as District Youth Cordinator, Nehru Yuva Kendra, Sikar
Sunday, June 13, 2010
टूटी हुई आस
जो मैंने चाहा नही वो अंजाम हो गया
मेरी तमन्नाओं का ये क्या मुकां हो गया,
मेरी जान औ रूह सिमटी थी एक आहट में
और वो आहट बसी थी केवल तेरी ही चाहत में,
चाहके भी तुमको हम पा ना सके
दाग लग गया दामन बचा ना सके,
छींटे जो लग उडे रंग-ए-मोहब्बत के
चाह के भी खुद को हम छिपा ना सके,
जब भीग ही गये तो मजा डूब के लिया
वो मजा भी पूरा हम पा ना सके,
डूबते को तिनके ने सहारा दे दिया
इसी के साथ मुझे उसी ने बेसहारा किया,
ले गया मुझको दूर वो किनारे से
ना डूब में सका ना सुखने दिया,
तुम जो सोचो कि नारद तिनके का कद्रदान हैं
ये ना सोचो कि तिनके में मुझे ख्वाबगाह मिला,
सच है कि तिनका मेरा कब्रगाह है बना
ये कहानी बयां कर रहा हुँ आज मैं बेटू
ये समझना ना कि बेवफ़ा था स्वीटू
मैं तुमसे दूर होके अकेला हूं अधूरा हूँ,
तुमसे ही मैं पूरा हूँ
बस जिन्दगी में तेरी ही ख्वाईश रखी
तेरे सिवा अब ना कोई ख्वाईश रही,
तेरी नफरत के आगे मेरी आस टूट गई,
तेरी नफरत के आगे मेरी आस टूट गई,
यादों में जी रहा हूँ , मेरी सांस छूट गई!
"नारद"
Labels:
Betu,
गम,
स्वीटू बेटू
I am a social worker who devoted himself with youth development, entrepreneurship, skill development of rural youth,
I have completed my MBA in Entrepreneurship , also completed my Law degree,
Currently working with United Nations Volunteers as a National Specialist Category and appointed as District Youth Cordinator, Nehru Yuva Kendra, Sikar
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