Sunday, June 13, 2010

टूटी हुई आस


जो मैंने चाहा नही वो अंजाम हो गया
मेरी तमन्नाओं का ये क्या मुकां हो गया,
मेरी जान औ रूह सिमटी थी एक आहट में
और वो आहट बसी थी केवल तेरी ही चाहत में,

चाहके भी तुमको हम पा ना सके
दाग लग गया दामन बचा ना सके,
छींटे जो लग उडे रंग-ए-मोहब्बत के
चाह के भी खुद को हम छिपा ना सके,

जब भीग ही गये तो मजा डूब के लिया
वो मजा भी पूरा हम पा ना सके,

डूबते को तिनके ने सहारा दे दिया
इसी के साथ मुझे उसी ने बेसहारा किया,
ले गया मुझको दूर वो किनारे से
ना डूब में सका ना सुखने दिया,

तुम जो सोचो कि नारद तिनके का कद्रदान हैं
ये ना सोचो कि तिनके में मुझे ख्वाबगाह मिला,
सच है कि तिनका मेरा कब्रगाह है बना

ये कहानी बयां कर रहा हुँ आज मैं बेटू
ये समझना ना कि बेवफ़ा था स्वीटू

मैं तुमसे दूर होके अकेला हूं अधूरा हूँ,
तुमसे ही मैं पूरा हूँ
बस जिन्दगी में तेरी ही ख्वाईश रखी
तेरे सिवा अब ना कोई ख्वाईश रही,

तेरी नफरत के आगे मेरी आस टूट गई,
तेरी नफरत के आगे मेरी आस टूट गई,
यादों में जी रहा हूँ , मेरी सांस छूट गई!


"नारद"

1 comment:

Kavi Kulwant said...

wah naarda ji.. bahut khoob... nice..
mazaa aa gaya..